मानसिक स्वास्थ्य सहायता (सोशल मीडिया)
मानसिक स्वास्थ्य सहायता (सोशल मीडिया)
मानसिक स्वास्थ्य सहायता: वर्तमान में, सोशल मीडिया पर एक चिंताजनक प्रवृत्ति उभर रही है। कई लोग आत्महत्या से पहले अपने वीडियो बनाकर उन्हें सोशल मीडिया पर साझा कर रहे हैं। यह न केवल उनके लिए खतरनाक है, बल्कि दूसरों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रवृत्ति युवाओं में तेजी से बढ़ रही है और यह मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को और बढ़ावा दे सकती है।
आत्महत्या और वीडियो का संबंध
देश में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां लोगों ने आत्महत्या से पहले वीडियो बनाकर साझा किए हैं। खंडवा में एक व्यक्ति ने अपने परिवार पर आरोप लगाते हुए ज़हरीला पदार्थ खा लिया, जबकि बेंगलुरु के एक इंजीनियर ने वीडियो और सुसाइड नोट छोड़कर जान दे दी। इन वीडियो को देखकर अन्य लोग भी ऐसा कदम उठाने की सोचने लगते हैं, जिसे "कॉपीकैट बिहेवियर" कहा जाता है। यह मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों पर गहरा असर डाल सकता है।
सोशल मीडिया की भूमिका
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब ने आत्महत्या से संबंधित सामग्री पर रोक लगाने के लिए कुछ प्रयास किए हैं। जैसे कि AI टूल्स के माध्यम से संदिग्ध पोस्ट की पहचान करना और स्थानीय अधिकारियों को सूचित करना, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। आत्महत्या के वीडियो बनाने की घटनाएं कम नहीं हो रही हैं।
विशेषज्ञों की राय
डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि सोशल मीडिया पर प्रसिद्धि पाने की चाह और मानसिक तनाव लोगों को आत्महत्या के लिए प्रेरित कर रहा है। आत्महत्या से पहले वीडियो बनाना कई बार "मदद की पुकार" होता है, जिसे लोग समझ नहीं पाते। डॉ. विधि पिलनिया का कहना है कि सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग और नकारात्मकता से डिप्रेशन बढ़ता है, जो खतरनाक हो सकता है।
क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- AI सिस्टम को बेहतर बनाना ताकि आत्महत्या से जुड़े पोस्ट जल्दी पहचाने जा सकें।
- हेल्पलाइन नंबर तुरंत दिखाना, जैसे भारत में 1800-233-3330।
- मानव मॉडरेटर्स की टीम को बढ़ाना, खासकर लाइव वीडियो पर नजर रखने के लिए।
- मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान चलाना ताकि लोग मदद मांगने में संकोच न करें।
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